शिवराज सरकार के कुनबे में इस बार कौन-कौन बन पाएगा मंत्री

Mar 27, 2020

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 27 मार्च। मध्यप्रदेश में नई सरकार का गठन होते ही कोरोना वाइरस की महामारी में उलझ गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अब सं‍भवत: अप्रैल के मध्य में ही अपनी कैबिनेट का गठन करेंगे। सभी की निगाहें लगी हुई हैं कि कौन कौन कैबिनेट का हिस्सा बनेगा। कांग्रेस से 22 विधायकों के टूटकर भाजपा में शामिल होने से कैबिनेट गठन का संकट और गहराएगा। जिनकी दम पर सरकार बनी है उन्हें सरकार में पर्याप्त तवज्जो मिलना तय है। ऐसे में यह आकलन थोड़ा कठिन है कि कैबिनेट में कौन कौन होगा। यहीं इस कठिन सवाल का सरल जवाव दिया जा रहा है।

ग्वालियर चंबल अंचल

डा. नरोत्तम मिश्रा- भाजपा के कद्दावर नेता। सरकार पलटने में अहम भूमिका निभाई। डिप्टी सीएम पद के भी दावेदार। चंबल अंचल में ब्राह्मण नेताओं में प्रमुख नाम है। अनूप मिश्रा के हासिए पर जाने के बाद और पावरफुल हुए हैं। लगातार छठी बार विधायक चुने गए। पार्टी में सबसे ऊपर तक बेहतरीन पकड़। इसलिए उनका मंत्री बनना तय है। अहम मंत्रालय का जिम्मा मिल सकता है। पहले ही भी भाजपा की 15 साल की सरकार में 14 साल मंत्री रहे और बहुत पावरफुल मंत्री रहे हैं।

डॉ. अरविन्द भदौरिया- चंबल अंचल के भिंड जिले की अटेर सीट से दूसरी बार विधायक चुने गए अरविंद भदौरिया की गिनती पार्टी के दबंग नेताओं में होती है, जो पार्टी के काम के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसलिए मध्यप्रदेश में सत्ता पलट के लिए भाजपा द्वारा चलाए गए आपरेशन लोटस में मुख्य किरदार निभाया। उन्हें इसके ईनाम स्वरूप मंत्री पद से नवाजे जाने की पूरी संभावना। इन दिनों शिवराज की गुड बुक में हैं और हाईकमान की नजर में भी हैं।

यशोधरा राजे सिंधिया- सिंधिया राजपरिवार की प्रतिनिधि और राजमाता सिंधिया की वारिस होने के कारण भाजपा में धमक बरकरार है। भाजपा की पिछली सरकार में लगातार मंत्री रही हैं। विभाग भले ही कम महत्व का दिया गया हो लेकिन शिवराज सिंह उन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखा पाए। ज्योतिरादित्यय सिंधिया के भाजपा में आने से और पावरफुल हो गईं। इसलिए इस बार भी उनके मंत्री बनने की संभावना प्रबल है।

गोपीलाल जाटव- गुना जिले की गुना सीट से विधायक गोपीलाल जाटव गुना अशोकनगर इलाके में अनुसूचित जाति का बड़ा चेहरा हैं। बहुत सहज और सरल राजनीतिज्ञ हैं। उमा भारती के समय राज्य मंत्री रह चुके हैं। पिछली बार उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने का फैसला अंतिम समय में हो गया था, लेकिन आचार संहिता लगने के कारण नहीं बन पाए।

ऐदल सिंह कंसाना—कांग्रेस के उन 22 विधायकों में शामिल जो हाल ही में इस्तीफा देकर भाजपा में आए हैं। सिंधिया खेमे के दंबग और दमदार विधायकों में शामिल। वे मंत्री नहीं बनाने के कारण ही पालीटकल ड्रामे के पहले ही कमलनाथ सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद रहे थे। क्षेत्र में बड़े गुर्जर नेताओं में गिनती। मुरैना में भाजपा का एक भी विधायक नहीं। इसलिए मंत्री बनाए जा सकते हैं।

प्रद्युमन सिंह तोमर- सिंधिया खेमे के उन नेताओं में शुमार जो महाराज के लिए कुछ भी कर सकते हैं। हाल ही में इस्तीफा देने वाले 6 मंत्रियों में शामिल। विधायक और मंत्री रहने के दौरान अपने व्यवहार से जमीनी नेता का आभास आम जनता को कराया। सिंधिया के साथ आने वाले सभी मंत्रियों को भाजपा सरकार में रखा जाना तय हुआ है, इसलिए प्रदयुमन का मंत्री बनना तय है। उन्होंने चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता जयभान सिंह पवैया को हराया था।

इमरती देवी- ज्योतिरादित्य सिंधिया के कहने पर कुएं में कूद जाने तक का दावा करने वाली इमरती देवी कमलनाथ सरकार में महिला एंव बाल विकास मंत्री थी। कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में आने वाले कमलनाथ के 6 मंत्रियों में प्रमुख नाम। ग्वालियर की डबरा सीट से दूसरी बार विधायक चुनी गई हैं। अनुसूचित जाति की महिला के नाते में कैबिनेट में उनका दावा बनता है।

विंध्य अंचल

नागेंद्र सिंह--सतना जिले की नागौद विधानसभा सीट से विधायक नागेन्द्र सिंह नागौद राजपरिवार के वारिस हैं। यह राजपरिवार हमेशा भाजपा समर्थक रहा है। नागेंद्र सिंह पहले भी भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। पिछली बार उन्हें विधानसभा चुनाव हार जाने के कारण लोकसभा का टिकट दिया गया था और वह जीत कर लोकसभा चले गए थे। इस बार फिर विधानसभा में हैं, विंध्य क्षेत्र में प्रमुख ठाकुर नेता हैं, राजपरिवार से होने के बाद भी बहुत सजह और सरल हैं। ईमानदार छवि वाले नेताओं में गिने जाते हैं। इस वजह से उनका मंत्री बनना तय माना जा रहा है।

जुगल किशोर बागरी- सतना जिले की रैगांव सुरक्षित सीट से विधायक जुगल किशोर बागरी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। पहले सरकार में मंत्री रह चुके हैं। कानूनी मामलों में फंसने के कारण मंत्री पद से हटाए गए थे। लेकिन अनुसूचित जाति के प्रमुख चेहरे हैं विंध्य क्षेत्र में। इसके चलते उन की संभावना मंत्री बनने की है।

दिव्य राज सिंह- रीवा जिले के सिरमौर विधानसभा सीट से चुने गए दिव्यराजसिंह पूर्ववर्ती रीवा रियासत के युवराज हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी दूसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं। रीवा राज परिवार और युवा चेहरा होने के नाते उन्हें राज्य मंत्री बनाया जा सकता है।

गिरीश गौतम- विंध्य क्षेत्र में जुझारू नेताओं में शामिल गिरीश गौतम लगातार मंत्री पद के दावेदार रहे हैं लेकिन अभी तक उनका नंबर नहीं लग पाया है। इस बार विपरीत परिस्थितियों में भी देवतालाब से चुनाव जीते हैं। ब्राह्मण नेता होने के नाते उनकी संभावना है, लेकिन राजेंद्र शुक्ला का कद कई बार उनके आड़े आ जाता है गिरीश शुरुआती दौर में कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे बाद में भाजपा में शामिल हुए कई बार यह अड़चन भी उन्हें मंत्री बनने से रोक देती है।

 राजेंद्र शुक्ला- रीवा जिले की रीवा सीट से निर्वाचित राजेंद्र शुक्ला पिछली सरकारों में पावरफुल मिनिस्टर रहे हैं। विभिन्न क्षेत्र में अब भाजपा के रणनीतिकार माने जाते हैं। प्रमुख ब्राह्मण नेताओं में शुमार हैं। बड़े व्यवसाई हैं। सहज और सरल तथा ईमानदार छवि है।  शिवराज सिंह चौहान की गुड बुक में माने जाते हैं। सत्ता पलट में प्रमुख भूमिका निभाने वाले नेताओं में शामिल थे। इसलिए उनका मंत्री पद सुरक्षित माना जा रहा है

 केदारनाथ शुक्ला- विंध्य के सीधी जिले की सीधी सीट से चुने गए केदारनाथ शुक्ला भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। हर बार संभावनाओं के बावजूद मंत्री नहीं बन पाए। उन्हें इस बार मंत्री पद या फिर स्पीकर की कुर्सी मिलने की संभावना जताई जा रही है।

बिसाहू लाल सिंह- विंध्य अंचल के अनूपपुर जिले की अनूपपुर सीट से विधायक बिसाहूलाल सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले वे नेता जो दिग्विजय सिंह समर्थक हैं। विंध्य क्षेत्र ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी नेताओं में गिने जाते हैं।दिग्विजय सिंह के शासनकाल में पावरफुल विभागों के मंत्री रहे हैं। कमलनाथ सरकार में मंत्री नहीं बन पाने के कारण नाराज होकर उन्होंने दिग्विजय सिंह का साथ और कांग्रेस का हाथ दोनों छोड़ा है उम्मीद है कि भाजपा उन्हें  मंत्री पद से नवाजेगी।

महाकौशल अंचल

संजय पाठक- कटनी से विधायक संजय पाठक मध्यप्रदेश के रईस नेताओं में शुमार हैं, जिनके पास खुद के हवाई जहाज और हेलीकाप्टर हैं। शिवराज सिंह चौहान की पिछली सरकार के दौरान बड़े नाटकीय ढंग से कांग्रेस छोड़कर के भाजपा में शामिल होने वाले संजय पाठक उप चुनाव जीतने के बाद मंत्री भी बना दिए गए। इस बार सरकार बदली तो सबसे अधिक संदेह के दायरे में संजय पाठक ही थे। सरकार के निशाने पर भी वे लगातार बने रहे। इसके बाद भी उन्होंने भाजपा का साथ नहीं छोड़ा। तमाम निजी नुकसान के बावजूद कमलनाथ सरकार का तख्ता पलटने में तन मन धन से लगे रहे। इस वजह से उनका मंत्री बनना तय माना जा रहा है।

अजय विश्नोई --भाजपा के कद्दावर नेताओं में शामिल अजय विश्नोई जबलपुर जिले के पाटन सीट से विधायक हैं। पिछली बार चुनाव हार जाने के कारण वे मंत्री नहीं बन सके थे, लेकिन उसके पहले वह शिवराज कैबिनेट में मंत्री रहे हैं। इनकम टैक्स छापे में नाम आने के कारण मंत्री पद से हटाए गए थे। कुछ दिन सरकार के मुखिया से खटास भी रही, लेकिन  भाजपा के कई बड़े नेताओं से सीधा संपर्क है। इस वजह से उन्हें मंत्री पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा।

अशोक रोहाणी- कोई बड़ा चेहरा नहीं है, लेकिन पार्टी के कद्दावर नेताओं में शामिल रहे स्वर्गीय ईश्वरदास रोहाणी के पुत्र हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के समय पिता के आसमयिक निधन के चलते राजनीति में आए और चुनाव लड़कर जीते, लेकिन उनकी जीत को सहानुभूति की जीत माना गया। इस बार फिर चुनाव जीते हैं। ईश्वरदास रोहाणी के नाम और सिंधी समाज के प्रतिनिधित्व के मद्देनजर उन्हें मंत्री बनाने की चर्चा है।

देव सिंह सैयाम- मंडला जिले की मंडला सीट से विधायक देव सिंह सैयाम प्रमुख आदिवासी नेताओं में गिने जाते हैं। महाकौशल से आदिवासी वर्ग के मंत्री पद के दमदार दावेदार ओमप्रकाश धुर्वे के इस बार चुनाव हार जाने के कारण सैयाम का मंत्री बनने का दावा ज्यादा मजबूत है।

गौरीशंकर बिसेन- भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार बिसेन बालाघाट सीट से विधायक हैं। भाजपा की पिछली सरकारों में हमेशा पावरफुल मंत्री रहे हैं। पार्टी और संघ में ऊपर तक सबसे सीधा परिचय है। इसके अलावा वे पमार समाज से आते हैं जिसका पूरे महाकौशल में बड़ा वोट बैंक है। इसलिए हरफनमौला नेता कहे जाने वाले बिसेन, जिन्हे सब भाऊ कहते हैं, का मंत्री बनना तय है।

जालम सिंह पटेल-  केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पावरफुल तथा दबंग नेताओँ में शुमार प्रहलाद पटेल के छोटे भाई मुन्ना भैया यानि जालम सिंह नरसिंहपुर सीट से विधायक है। अपने बेटे की गैर कानूनी गतिविधियों के कारण जालम सिंह हमेशा विवादो में रहे हैं। लेकिन प्रहलाद पटेल का छोटा भाई और उनके समाज लोधी समाज का सिर्फ महाकौशल ही नही बल्कि बुंदेलखंड में भी बड़ा वोट बैंक होने के कारण भाजपा उन्हें कभी हासिए पर नहीं कर पाई। शिवराज की पिछली सरकार में तो उन्हें आखिरी समय में राज्य मंत्री भी बना दिया गया था।  शिवराज सिंह नहीं चाहते कि लोधी समाज में खाली बैठी उमा भारती का दबदबा रहे, इसलिए माना जा रहा है कि जालम फिर मंत्री बनेंगे।

मध्य भारत अंचल

कमल पटेल-- हरदा जिले की हरदा सीट से विधायक कमल पटेल भाजपा के दिग्गज नेताओं में गिने जाते हैं। बेटे की गैरकानूनी गतिविधियों ने उन्हें विवादों में बनाए रखा,  इसके बावजूद वह पिछली सरकारों में मंत्री बने रहे। चुनाव हार जाने के कारण वह पिछली बार मंत्रिमंडल के सदस्य नहीं थे, लेकिन इस बार फिर उनका दावा काफी दमदार है। उनके समाज का बड़ा वोट बैंक होने के कारण भी भाजपा की मेहरबानी उन पर बनी रहती है।

 डॉ सीताशरण शर्मा- होशंगाबाद जिले की होशंगाबाद सीट से विधायक डॉ सीताशरण शर्मा पिछली सरकार में विधानसभा अध्यक्ष थे, लेकिन इस बार वह मंत्री बनना चाहते हैं। मध्य भारत में ब्राह्मण समाज का प्रमुख चेहरा होने के कारण तथा चुनाव के समय भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए दिग्गज नेता सरताज सिंह को हराकर भाजपा की सीट बचाने में कामयाब रहने के कारण उनका महत्व बढ़ गया है। इसलिए स्पीकर ना बनने की स्थिति में वे मंत्री बन सकते हैं।

सुरेंद्र पटवा- रायसेन जिले की भोजपुर सीट से विधायक सुरेंद्र पटवा मध्यप्रदेश में भाजपा के संस्थापकों में शामिल और दो बार प्रदेश के सीएम रहे स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा के दत्तक पुत्र है। सुरेंद्र पटवा पिछली शिवराज सरकार में मंत्री थे। सुंदर लाल  पटवा जी का निधन हो चुका है, इसलिए सुरेंद्र के मंत्री बनने की संभावनाएं क्षीण थीं,  लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस के सुरेश पचौरी जैसे बड़े चेहरे को करारी शिकस्त देने के कारण उन्हें कैबिनेट में रखा जा सकता है।

रामपाल सिंह- रायसेन जिले की सिलवानी सीट से विधायक रामपाल सिंह भाजपा की 15 साल की सरकार में लगातार मंत्री बने रहे। शिवराज की गुड बुक में शामिल नेताओं में शुमार जो सुबह बिना किसी काम के भी सीएम हाउस जाकर सीएम से नमस्कार करने का मौका नहीं छोड़ते। इस बार भी उनका मंत्री पद सुरक्षित माना जा रहा है। ऑपरेशन लोटस में भी उनकी भूमिका सक्रिय थी।

प्रभुराम चौधरी- सरकार पलटने के कारण कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले सिंधिया समर्थकों में प्रमुख प्रभु राम चौधरी रायसेन जिले की सांची सीट से विधायक हैं। उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता डॉ गौरीशंकर शेजवार की सियासत से विदाई के बाद उनके पुत्र को मिले टिकट पर उन्हें हराकर चुनाव जीता। सामान्य तौर पर रायसेन जिले से सुरेंद्र पटवा और रामपाल सिंह की उम्मीदवारी मंत्रिमंडल में ज्यादा प्रभावी होने के कारण प्रभु राम का मंत्री बनना संभव नहीं था, लेकिन तख्तापलट के दौरान हुए अघोषित समझौते के चलते सिंधिया के खास समर्थक और कमलनाथ सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री रहे प्रभुराम को मंत्री बनाया जाएगा।

 विश्वास सांरग- भोपाल की नरेला विधानसभा सीट से तीसरी बार चुनाव जीते विश्वास सारंग भाजपा के दबंग युवा नेताओं में गिने जाते हैं। उनके पिता कैलाश नारायण सारंग मध्यप्रदेश में भाजपा के संस्थापक नेताओं में शुमार हैं। इस वजह से सारंग की पकड़ पार्टी में ऊपर तक है। शिवराज सिंह चौहान की गुड बुक में भी शामिल है। ऑपरेशन तख्तापलट में भी सक्रिय भूमिका निभाई। शिवराज की पिछली सरकार में भी मंत्री थे इसलिए उनका इस बार भी मंत्री बनना तय माना जा रहा है।

रामेश्वर शर्मा-- भोपाल की हुजूर विधानसभा सीट से विधायक रामेश्वर शर्मा की छवि भाजपा के आक्रमक दस्ते वाली है,क्योंकि वे भाजपा में आने के पहले बजरंग दल का काम देखते थे। वे तमाम विरोधों और विवादों के बाद भी तीसरी बार विधायक चुने गए हैं। इस बार मंत्रिमंडल के प्रबल दावेदार राजधानी के दूसरे नेता उमाशंकर गुप्ता चुनाव हार गए हैं  और दिग्गज नेता बाबूलाल गौर अब इस दुनिया में नहीं है, इसलिए इस बार रामेश्वर शर्मा के मंत्री बनने की संभावना अधिक है।

करण सिंह वर्मा- सीहोर जिले की इच्छावर सीट से विधायक करण सिंह वर्मा शिवराज सिंह चौहान के विश्वस्त नेताओं में गिने जाते है। वह शिवराज की पिछली कैबिनेट में भी उनके साथ थे। वे मुख्यमंत्री के सीहोर जिले से ही आते हैं इसलिए उनका इस बार भी मंत्री बनना अधिक संभावित है।

 

मालवा - निमाड़ अंचल

कुंवर विजय शाह- पूर्वी निमाड़ अंचल के खंडवा जिले की हरसूद विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले विजय शाह प्रमुख गोंड रियासतों में शामिल मकड़ई राजपरिवार से आते हैं। आज भी पूरे इलाके में इस राजपरिवार के प्रति आम मतदाताओं का सम्मान है। विजय भाजपा के प्रमुख नेताओं में गिने जाते हैं। छोटे भाई संजय शाह को भी लगातार दूसरी बार टिकट दिलवाया और विधायक बनवाया। यह उनकी भाजपा में पकड़ का उदाहरण है। इसलिए तमाम विवादों का साथ होने केबाद भी उन्हें शिवराज कैबिनेट का सदस्य मानकरचलाजा रहा है।

रमेश मेंदोला—इंदौर शहर की इंदौर–दो विधानसभा सीट से विधायक रमेश मेंदोला पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के हनुमान माने जाते हैं। उन्हें पहली बार टिकट दिलाने के लिए कैलाश विजयवर्गीय ने अपनी मुफीद सीट छोड़ दी थी। मेंदोला रिकार्ड मतों से जीत हासिल करने वाले विधायको में शामिल हैं। तीसरी बार के विधायक रमेश को मंत्री बनाने के लिए विजयवर्गीय हर बार एड़ी चोटी का जोर लगाते हैं। लेकिन उनके मुकाबले हर बार पार्टी में उनकी प्रबल प्रतिद्वंदी सुमित्रा महाजन की ओर से सुदर्शन गुप्ता का नाम आ जाता था। इस विवाद को चलते रमेश और सुदर्शन दोनों मंत्री नहीं बन पाए। इस बार सुदर्शन हार के कारण विधायक नहीं है, इसलिए मेंदोला का दावा प्रबल है। वे तख्ता पलट आपरेशन में तन मन धन से  लगे थे।

मालिनी लक्ष्मण सिंह गौड़- इंदौर की महापौर और इँदौर 4 विधानसभा क्षेत्र से तीसरी बार विधायक मालिनी गौड़ भाजपा के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह गौड़ की पत्नी हैं जो पति के असामयिक निधन के बाद राजनीति में आई थीं। इंदौर में उन्हें कैलाश विजयवर्गीय विरोधी खेमे का माना जाता है। भाजपा नेतृत्व बैलेंस बनाने के लि अक्सर कैलाश विरोध किसी नेता को मंत्री जरूर बनाता है। इसलिए मालिनी भी मंत्री पद की दावेदार मानी जा रही है।

महेंद्र हार्डिया- इंदौर 5 विधानसभा क्षेत्र से विधायक महेंद्र हार्डिया सहज और सरल नेताओँ में शामिल हैं। कैलाश विरोधी खेमे से मंत्री बनाने की परंपरा के चलते उन्हें शिवराज सिंह चौहान की दूसरी सरकार में मंत्री बनाया गया था, लेकिन पिछले बार वे चुनाव नहीं जीत पाए थे। इस बार फिर उनकी संभावना प्रबल है।

ऊषा ठाकुर – आरएसएस के रास्ते भाजपा में सक्रिय ऊषा ठाकुर इस बार इंदौर की महू सीट से जीतकर आई हैं। कहा जाता है कि कैलाश विजयवर्गीय ने अपने बेटे के लिए मुफीद सीट के कारण ऊषा का इँदौर तीन से टिकट कटाकर महू ‍भिजवा दिया। उनके बेटे आकाश इंदौर – 3 लड़े और चुनाव जीते। इसके कारण उनकी गिनती भी कैलाश विरोधी खेमे में है। वे शिवराज औरसंघ दोनों कीपंसदीदा है। इसलिए इस बार उनके मंत्री बनने की संभावना है। लेकिन उनमें और मालिनी गौड़ में किसी एक को ही जगह मिलेगी। यह भी हो सकता है कि विवाद बढ़ने पर दोनों का नाम कट जाए।

तुलसी राम सिलावट – सरकार के तख्ता पलट में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले सिंधिया समर्थक मंत्रियों में तुलसी राम सिलावट भी शामिल हैं। इंदौर की सांवेर सीट से विधायक तुलसीराम दबंग नेताओं में गिने जाते हैं और मालवा अंचल में अनुसूचित जाति के प्रमुख नेता हैं। सिंधिया जी से हुए समझौते के चलते उनका मंत्री बनना तय माना जा रहा है। अगर सिंधिया जी का दबाव बढ़ा तो तुलसीराम उप मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं।

पारस चंद जैन- उज्जैन की उज्जैन उत्तर सीट से विधायक पारस जैन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। भाजपा की 15 साल की सरकार में लगातर मंत्री बने रहे। सहज और सरल स्वभाव के नेताओं में शामिल पारस जैन मंत्री रहते भी रोज अखाड़े में जाते हैं। उन्हें शिवराज कैबिनेट का प्रमुख दावेदारे माना जा रहा है।

जगदीश देवड़ा—मंदसौर जिले की मल्हारगढ़ सुरक्षित सीट से विधायक जगदीश देवड़ा मालवा अंचल में अनुसूचित जाति का बड़ा चेहरा है। पिछली सरकारों में पावरफुल मंत्री रहने के बाद भी उनकी सहजता और सरलता कम नहीं हुई। लेकिन परिवहन मंत्री रहते उनके निज सहायक का नाम व्यापमं घोटाले में आने से वे विवादों में आ गए। उसके बाद भाजपा फिर जीतकर सत्ता में आ गई लेकिन देवड़ा मंत्री नहीं बन पाए। अब सारा मामला शांत हो गया है और वे फिर जीत गए हैं। इसलिए उनकी उम्मीद बढ़ गई है।

गायत्री राजे पवार- पूर्ववर्ती देवास रियासत की वारिस गायत्री राजे पवार पति तुकोजीराव पवार के निधन के बाद राजनीति में आईं और दूसरी बार देवास सीट से विधायक हैं। उनके पति रियासत के कारण ही लगातार मंत्री बने रहे। अब गायत्री राजे दूसरी बार की विधायक हैं और महिला है, इसलिए उनके मंत्री बनने की संभावना जताई जा रही है।

ओम प्रकाश सखलेचा- प्रदेश की 230 सीटों में से सबसे अंतिम 230 जावद से विधायक ओमप्रकाश सखलेचा पार्टी के उन नेताओं में शुमार हैं, जिन्हें कई बार आश्वासनों के बाद बी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। मध्य प्रदेश में भाजपा कीतरफ से मुख्यमंत्री रह चिुके तीन नेताओं के पुत्रों को कैबिनेट में जगह मिल गई। गोविंद नारायण सिंह के पुत्र हर्ष सिंह, कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी, सुंदरलाल पटवा के दत्तक पुत्र सुरेंद्र पटवा मंत्री बनने में सफल रहे। लेकिन सबसे दबंग मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा के पुत्र ओमप्रकाश आज तक मंत्री नहीं बन पाए। इस बार मालवा अंचल से दीपक जोशी चुनाव हार गए हैं. इसलिए उम्मीद है कि ओमप्रकाश सखलेचा को जगह मिल जाए। 

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